न बिजली का बिल आता है, न पानी और गैस सिलेंडर का खर्चा... कैसा है ये करिश्माई घर! जिसे देखकर कहेंगे- वाह

नई दिल्ली: अगर आपसे पूछा जाए कि किसी इंसान को एक घर के अंदर सबसे पहली जरूरत के तौर पर क्या चाहिए? तो शायद आपका जवाब होगा, बिजली और पानी। बिजली इसलिए, ताकि घर के अंदर लाइट जल सके और गर्मी में पंखा या एसी चल सके। पानी तो खैर नहाने-खाने से लेकर रोज

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नई दिल्ली: अगर आपसे पूछा जाए कि किसी इंसान को एक घर के अंदर सबसे पहली जरूरत के तौर पर क्या चाहिए? तो शायद आपका जवाब होगा, बिजली और पानी। बिजली इसलिए, ताकि घर के अंदर लाइट जल सके और गर्मी में पंखा या एसी चल सके। पानी तो खैर नहाने-खाने से लेकर रोजमर्रा की हर जरूरत से जुड़ा है। लेकिन, क्या आप किसी ऐसे घर में रह सकते हैं, जहां ना बिजली का कनेक्शन हो और ना ही पानी की पाइपलाइन। बेंगलुरु के एक कपल ने ऐसा ही हर बनाया है, जहां इंसान समझ सकता है कि उसके लिए जरूरी क्या है और असल सामान्य जीवन क्या है।
बेंगलुरु में रहने वाले एक पति-पत्नी, रेवा और रंजन, ने एक अनोखा घर बनाया है, जो प्रकृति के साथ पूरी तरह से तालमेल बिठाता है। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के साथ बातचीत में रेवा ने बताया कि यह घर इस बात का जीता-जागता सबूत है कि कम सामान और कम संसाधनों में भी एक खूबसूरत और आरामदायक जिंदगी जी जा सकती है। 770 वर्ग फुट में बने इस घर में मिट्टी, टेराकोटा और रिसाइकल की गई चीजों का इस्तेमाल हुआ है, जो इसे पर्यावरण के अनुकूल बनाता है।

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घर की छत मिट्टी और मंगलौर टाइल्स से बनी है, जो बारिश के पानी को जमा करने और गर्मी में घर को ठंडा रखने में मदद करती है। नींव सीमेंट की बजाय मिट्टी-कंक्रीट से बनी हैं। वो अपने घर को ज्यादातर प्राकृतिक संसाधनों पर चलाते हैं। उनके यहां नगर निगम का पानी नहीं आता, फिर भी उन्हें कभी पानी की कमी नहीं होती। अब आप सोचेंगे कि ऐसा कैसे संभव है?

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बारिश का 28 हजार लीटर पानी

दरअसल, उनके घर में बारिश के पानी को जमा करने की व्यवस्था है, जिसके जरिए 28 हजार लीटर तक पानी स्टोर हो सकता है। इस घर में बिजली के पंखे या लाइट नहीं हैं। बड़ी खिड़कियां और खुली जगहों से घर में प्राकृतिक रोशनी और हवा आती रहती है। वो सूरज के उगने और अस्त होने के साथ अपनी दिनचर्या चलाते हैं।

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खाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल

रात में रोशनी के लिए ये तेल के लैंप का इस्तेमाल करते हैं। बिजली का उपयोग सिर्फ उनके इलेक्ट्रिक वाहन को चार्ज करने के लिए होता है। इसका सीधा मतलब है कि ये दोनों पेट्रोल-डीजल के इस्तेमाल से भी कोसों दूर हैं। इनका खाना सोलर कूकर में बनता है। खाना रखने के लिए ये मिट्टी के घड़े का इस्तेमाल करते हैं, जो बिना बिजली के भी खाने को 8-10 डिग्री सेल्सियस पर ताजा रखते हैं।

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आंगन में उगाते हैं सब्जियां

अपने खाने के लिए ये घर के बगीचे में खुद सब्जियां उगाते हैं। इनमें टमाटर, पालक, पपीता, लौकी जैसी 40 से ज्यादा किस्में शामिल हैं। बगीचे में पानी देने के लिए वे घर के गंदे पानी का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, उनके घर में ज्यादातर जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी हो जाती हैं। फिर भी वे जल्द ही पूरी तरह से ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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